University/College Project Guide in Hindi

नमस्कार दोस्तों, इस article में हम लोग जानेंगे की University/College Project को बनाने के लिए किन किन का ध्यान रखें या University/College Project को कैसे बनाये ताकि full marks के साथ कुछ ऐसा बनाये की इससे कुछ सीख पाए न की सिर्फ प्रोजेक्ट्स मार्क्स के लिए बनाये, यदि आपको सिर्फ Marks के लिए Project बनाने है तो आर्टिकल पड़ने से कोई लाभ नहीं है यही रहेंगे दे।

तो बात करते है कॉलेज में प्रोजेक्ट के प्रकार की, कॉलेज प्रोजेक्ट बेसिक दो प्रकार के है एक Major प्रोजेक्ट एवं Minar Project इनको छोड़कर एक और प्रकार के प्रोजेक्ट जो रिसर्च आधारित होते है जो पड़ी लिखी समाज में रहते है, ज्यादातर को Major एवं माइनर ही है।

Major Project – मेजर प्रोजेक्ट को हमारी/अपनी graduation के अंतिम ईयर में करना पड़ता है, (करता कोई नहीं बस हो जाता दुर्भाग्य/सौभाग्य बस) चाहे आप Btech हो या कोई और अन्य डिग्री धारी। इस प्रोजेक्ट को बनाने के लिए स्टूडेंट्स को 1 साल का समय मिलता है लेकिन अफ़सोस स्टूडेंट को बनाने में केवल 7 दिन का समय (अधिक से अधिक) एवं कम-से-कम 1 दिन ही लगता है, और कुछ महानुभाव को तो बस मेजर को 1 दिन ही बना लेते है।

Minor Project – उस सोतैली बहन की तरह है जिससे कोई नहीं पूछता है बर्चश्व तो मेजर प्रोजेक्ट का घर के मुखिया की तरह, यदि जॉब इंटरव्यू देने जाओ तो सभी इनकी बात करते है मेजर प्रोजेक्ट में क्या बनाया है। कुछ खास ?

आजकल कोई स्टूडेंट प्रोजेक्ट्स ध्यान नहीं देता है क्योंकि viva वाले टीचर के सामने कुछ नहीं सॉरी ही तो बोलना है, Congratulations you have passed with first division right?

Importance of Projects

  • College/University के प्रोजेक्ट्स सिर्फ मार्क्स पाने के लिए ही नहीं बहुत कुछ के लिए भी मिलता है इसलिय शामे प्रोजेक्ट बनाने के लिए १ साल दिया है ताकि हम कुछ develop कर सके, प्रोजेक्ट हमारी ४ साल की पड़े को दिखने की मौका है, जिसे ज्यादातर लो ऐसे ही जाने देते है.
  • प्रोजेक्ट बनाने से हम कुछ सीखते है यदि आप की Technical/Professional कोर्स कर रहे है तो, प्रोजेक्ट हमारी पड़े का निचोड़ है यदि ये बनाने आते है तो हमें गर्व है की आपने कॉलेज में पढ़ाई की है बरना प्रोजेक्ट तो बाकि सब कॉलेज में प्रोजेक्ट पेन-पेपर पर ही समाप्त हो जाते है।
  • प्रोजेक्ट ही है जो हमें Real प्रोब्लेम्स solve करना सिखाते है, यदि प्रोजेक्ट पर काम किया है तो जॉब में आने वाले परशानी पहुत कम रहेंगी यदि सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में जॉब करना इंटरव्यू के मुकाबले बहुत अधिक कठिन है।
  • प्रोजेक्ट्स कुछ इस प्रकार महत्वपूर्ण है स्टूडेंट्स के लिए जब कभी जो के लिए अप्लाई करते है तो सबसे पहले सामने वाले के पास आपका सिर्फ resume रहता जी प्रोजेक्ट्स एवं एक्सपीरियंस (fresher नहीं है तो ) रहता है जो देने वाले को सिर्फ वर्क देखता है की आपने कुछ किया है की नहीं किया तो ठीक वार्ना रिज्यूमे ऐसे ढेरों पड़े है उनके पास। कोई भी Hire के वाले इंसान सिर्फ आपने वर्क showcase बहुत अच्छा और वास्तव में काम किया है तो वह definately आपको Callback/Reply करेगा।

उदाहरण – मान लेते है हमें blog writing के लिए किसी को hire कारना है तो सबसे पहले वो स्किल देखेंगे की आती या नहीं ब्लॉग writing, इसके लिए हम सामने वाले की लिखी हुई blogs देखनी होंगी की कैसे लिखी हुई है rank कर रही है की नहीं। सामने वाले के पास यदि कोई डेमो वर्क नहीं है दिखने के लिए तो हम कैसे hire करंगे।

Steps of making project

ये पॉइंट्स केवल सॉफ्टवेयर प्रोजेक्ट के लिए ही नहीं, और दूसरी फील्ड के प्रोजेक्ट बनाने उपयोग कर सकते है –

  1. Requirement Gathering
  2. Development Tools and Technologies
  3. Scope of work
  4. Design and Prototype
  5. Implementation
  6. Testing
  7. Demonstration
  8. Documentation

1. Requirement Gathering

इस स्टेप में हम जो प्रोजेक्ट बनाने वाले है एक के इंफोर्मशन लिखते है ताकि clear रहे की इस प्रोजेक्ट क्या-क्या रहे या करने वाले है, यदि हमारे पास अच्छे से requirement नहीं होगी तो एक प्रोडक्ट कैसे बनेगा।

यदि कोई हमारे पास कस्टमर है जिसके के लिए प्रोजेक्ट बनाना है तो इससे ये सभी इनफार्मेशन ली जाती है एक बार complete इनफार्मेशन हो जाने के बाद हम next step पर मूव कर सकते है।

2. Development Tools and Technologies

design tools

सभी इनफार्मेशन होने के बाद हम सॉफ्टवेयर प्रोजेक्ट को बनाने के लिए सॉफ्टवेयर टूल्स सेलेक्ट करते है जिसमे प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज, लाइब्रेरी, फ्रेमवर्क आदि सेलेक्ट करते है ये निर्भर करता है की प्रोजेक्ट सामने वाले के किस लिए चाहिए एवं किस प्लेटफार्म एवं टेक्नोलॉजी में चाहिए। उसे वेबसाइट, web app या मोबाइल app चाहिए। टेक्नोलॉजी वही सेलेक्ट करनी चाहिए जो टीम वालों को आती है एवं कस्टमर को क्या चाहिए है।

3. Scope of work

Scope of work में कस्टमर को complete roadmap बताया जाता है प्रोजेक्ट किस से चलेगा साथ ही साथ टाइमिंग में बता दी जाती है जैसे २ दिन में डिज़ाइन रेडी होगा, अप्रूवल के बाद डेवलपमेंट होगा जिसका फर्स्ट ड्राफ्ट आपपको २० – २५ के अंदर डेलिवर कर देंगे , ऐसे कुछ इस प्रकार की का स्कोप ऑफ़ वर्क रहता है। प्रोजेक्ट के दौरान ऐसी रोडमैप को फॉलो किया जा है।

4. Design and Prototype

Design and Prototype स्टेप में, सॉफ्टवेयर का UI (User Interface) design किया जाता है जो की Figma, Canva एवं photoshop जैसे पॉपुलर softwares उपयोग किया जाता है जैसे ही सॉफ्टवेयर का डिज़ाइन कम्पलीट हो जाता तो customer अप्रूवल लिया जाता है यदि कोई changes है तो वो फिक्स करने के बाद फिर से डिज़ाइन को प्रेजेंट करना पड़ता है यदि डिज़ाइन अप्प्रोव हो जाता है तो आगा बढ़ते है यदि नहीं तो और अच्छे डिज़ाइन बनाने पड़ते है। इस स्टेप की लिए जिसका design skill बहुत अच्छी होती है वह करता है।

5. Implementation

Implementation स्टेप में हम प्रोजेक्ट जिस भी फील्ड का हो इम्प्लीमेंट करते है (जैसे सॉफ्टवेयर प्रोजेक्ट है तो इस स्टेप में program लिखने पड़ने है), यही स्टेप है जिसमे सभी फीचर्स को इम्प्लीमेंट किया जाता है, ऐसी स्टेप के लिए ही अच्छे से प्रोजेक्ट की इनफार्मेशन ली जाती है कस्टमर से, यदि कोई भी फीचर भी हुआ या नहीं हुआ है उसके लिए यही स्टेप जिम्मेदार है।

इसी स्टेप में हम programming टूल्स कर उपयोग किया जाता है जो की कुछ इस प्रकार है –

  1. vs-code (Visual Studio Code) (All in one light weight IDE)
  2. IntelliJ (Java IDE)
  3. PyCharm (Python IDE)
  4. Android Studio (For Mobile App)
  5. WordPress
  6. Programming Language and IDE

6. Testing

Implementation होने के बाद सॉफ्टवेयर या किसी प्रोजेक्ट की टेस्टिंग की जाती, ये टेस्टिंग बहुत से प्रकार की होती है, हर एक प्रकार की टेस्टिंग का एक निश्चित समय एवं स्थान होता है। यदि टेस्टिंग में project सभी परफॉर्म करता है तो आगे पड़ते है नहीं तो पहले जो कमी पायी जाती है उसको पूरा करना पड़ना है।

टेस्टिंग के प्रकार है –

  1. Functional एवं Non-Testing
  2. Black Box, White Box & Gray Box Testing
  3. System Testing
  4. Integration Testing
  5. Unit Testing
  6. Beta Testing

7. Demonstration

Demonstration के अंतर्गत Porject/Software को customer के सामने प्रदर्शित करना पड़ता है (चला के दिखना की सब कुछ साक्षी implement किया है नहीं) यदि कोई कमी रह जाती है तो उसे note कर लिया जाता है और implementation में फिर से पहुंच जाता है जाती तक customer satisfied नहीं हो तब तक ये steps repeat होते रहते है।

8. Documentation

Demonstration में हम उन सभी बातो को लिखते है जिससे की सॉफ्टवेयर अच्छे से चलाया जा सके। documentation लिखते समय निम्न point का ध्यान रखे

  1. Software की Documentation में हर एक स्टेप को लिखा जाता से की सॉफ्टवेयर कैसे इनस्टॉल करना है, इसके क्या system requirement रहेंगी सबकुछ।
  2. सॉफ्टवेयर को इनस्टॉल करने से पहले क्या सेटिंग रखनी चाहिए सिस्टम की।
  3. कौन कौन से सॉफ्टवेयर इनस्टॉल होने चाहिए।
  4. सॉफ्टवेयर documentation technical एवं non-technical दोनों प्रकार की होती होती है।
  5. सॉफ्टवेयर documentation में सॉफ्टवेयर को उपयोग करने के सभी स्टेप्स रहते है ताकि customer बाद में कोई दिक्कत न आये।
  6. documentation में help एवं सपोर्ट को भी एक section रहता है ताकि डेवेलोप करने वाले से contact किया जाता सके।

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